कर्म का फल तो भुगतना ही पड़ता है……
एक बहुत ही यशस्वी राजा था। वह अपने हर कार्य में सर्वश्रेस्ट था।प्रजा का खूब ध्यान रखता था,उन्हें कभी भी किसी भी बात के लिये तंग नही करता था,धर्मत्मा व दयालु था।

उसकी एक आदत यह भी थी की वह सप्ताह में एक दिन गोशाला की सफाई,गायों को नहलाने का कार्य भी स्वयं ही करता था,एक बार वह गोशाला में अपने कार्य में लगा हुआ था,,
तभी एक साधू भिक्षा मांगता हुआ गोशाला तक आ गया,उसने राजा से भिक्षा मांगी,राजा अपने ध्यान में मग्न सफाई कर रहा था,शायद कुछ खिजा भी हुआ था*
उसने दोनों हाथो से उठा कर गोबर साधु की झोली में डाल दिया,साधू आशीर्वाद देते हुए वंहा से चला गिया,राजा को कुछ देर बाद अपनी गलती का एहसास हुआ,राजा ने सैनिको को साधु को ढूढ़ने के लिए भेजा परन्तु साधु नही मिला
इस बात को ना जाने कितना समय बीत गया,,एक बार राजा शिकार करने जंगल में गया हुआ था,खूब थकने पर वह पानी की तलाश में भटकते भटकते एक कुटिया के बाहर पहुंचा
कुटिया के अंदर झांकने पर उसने देखा वहां एक साधु धयान में मग्न बैठा था,वहीं उसके पास एक खूब बड़ा गोबर का ढेर लगा हुआ था,राजा अचंभित व परेशान हो कर सोचने लगा की साधु के चेहरे का तेज कितना अधिक है,पर यह गोबर का ढेर क्यों है यहाँ,,,
राजा साधु के पास गया,प्रणाम किया,जल माँगा व पिया,और पूछा साधू से,अगर आप बुरा ना माने तो क्या में जान सकता हुँ,की आप के चेहरे का तेज कहता है की आप एक तपस्वी है,,फिर आप की कुटिया में इतनी गंदगी क्यो है,साधू ने कहा राजन हम जीवन में जो कुछ भी जाने या अनजाने,अच्छा या बुरा करते है।

वह हमें इसी जन्म में या अगले जनम में की गुना हो कर मिलता है,यह गोबर भी किसी दयालु ने दान में दिया है,राजा को झटका लगा और सारी घटना कई की साल पहले की स्मरण हो आई
राजा ने साधू से क्षमा मांगी व प्रायश्चित का मार्ग पूछा,साधु ने कहा राजन इस गोबर को तुम्हें खा कर समाप्त करना है,,इसे जला कर राख में बदल लो या थोड़ा थोड़ा खा कर समाप्त करो*
राजा ने कहा साधु महाराज कोई और उपाय बताये क्योकि थोड़ा थोड़ा खा कर समाप्त करने में की वर्ष बीत जायेगे,साधु ने कहा राजन और उपाए तुम कर नही पाओगे,राजा अड़ गया तो साधु ने कहा राजन कोई कार्य ऐसा करो की तुम्हारी चारो कुंठो में बदनामी हो
इस से इसी जन्म में तुम्हारे इस कार्य का कुछ तो भार अवश्य ही कम हो जायेगा,,राजा महल में गया बहुत सोचने के बाद अगले दिन सुबह उसने राज्य की सबसे सुंदर वेश्या को बुलाया,वह खूब सजदज कर आई,राजा उस वेश्या को ले कर रथ पर पूरे राज्य का भर्मण करने निकल पड़ा,,
जिसने भी राजा वेश्या के साथ देखा वह आचम्भित रह गया,व साथ ही थू थू करने लगा,,प्रजा कहने लग पड़ी लगता है राजा का दिमाग खराब हो गया है.,,,

राजा ने इस प्रकार की महीनो तक किया,काफी दिन घूमने के बाद राजा जब गोबर के ढेर के को देखने गया तो उसने पाया अब वहां केवल शायद उतना ही गोबर रह गया है जो उसने साधु को दिया था,,वह और भी कई दिनों के उसी प्रकार के कार्य के बाद भी समाप्त नही हो रहा था।
अचानक एक दिन साधु महल में आया उसने राजा से कहा राजन यह तो मूल है इसे तो तुम्हे खा कर ही समाप्त करना पड़ेगा,,राजा ने उस गोबर को राख में बदला व खा कर समाप्त किया।