Skip to content

संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराण-बदरिकाश्रम-महात्म्य

संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराण

〰️〰️🌼〰️🌼〰️🌼〰️〰️

बदरिकाश्रम-महात्म्य

〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️

गरुड़शिला, वाराहीशिला और नारसिंहीशिला की उत्पत्ति और महिमा…(भाग 3)

〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

स्कन्द ने कहा- भगवन् ! अब वाराहीशिला का माहात्म्य बतलाइये।

भगवान् शिव बोले- रसातल से पृथ्वी का उद्धार करके और युद्ध में हिरण्याक्ष नामक दैत्य को मारकर भगवान् वाराह बदरीक्षेत्र में आये तथा प्रलयकाल की समाप्ति तक वहीं बने रहे। वाराहजी ने शिला के रूप में ही वहाँ निवास किया।

स्कन्द ने कहा- प्रभो! अब नारसिंही शिलाका माहात्म्य कहिये।

भगवान् शिव बोले- भगवान् नृसिंह अपने नखों के अग्रभाग से ही लीलापूर्वक हिरण्यकशिपु का वध करके प्रलयकाल की अग्नि के समान उद्दीप्त दिखायी देने लगे। तब दयालु देवताओं ने आकर और दूर ही खड़े रहकर लीला से अवतार-विग्रह धारण करने वाले भगवान् विष्णु का स्तवन किया। तब अपने तेज से समस्त देवताओं और असुरों को भी व्याप्त करने वाले भयानक पराक्रमी नृसिंहजी प्रसन्न होकर बोले- ‘देवताओ! तुमलोग मुझसे कोई वर माँगो जो तुम्हारी शान्ति और सुख का एकमात्र साधन हो।’ उस समय देवताओं के स्वामी ब्रह्माजी ने कहा- ‘भगवान् नृसिंह ! आपका यह अत्यन्त उग्ररूप समस्त देहधारियों को भयभीत करने वाला है, अतः इसको समेट लीजिये।’ उनकी प्रार्थना के अनुसार दिव्य रूप धारण करके भगवान् ने फिर कहा- ‘देवताओ ! मैं तुम पर प्रसन्न हूँ, बोलो तुम्हारा कौन-सा कार्य करूँ?’

देवता बोले- ‘हमारा अभीष्ट वर यही है कि आप मन को प्रसन्न करने वाले परम शान्त चतुर्भुजरूप से ही हमें दर्शन दिया करें।’ तब भगवान् उन्हें दिव्यदृष्टि से देखकर विशालापुरी (बदरिकाश्रम) – को चले गये। तदनन्तर देवताओं का भय शान्त हो गया और उन्होंने जल के मध्य में विराजमान भगवान् विष्णु का दर्शन, नमस्कार और परिक्रमा करके उन्हीं में अपना मन लगाकर अपने-अपने लोक को प्रस्थान किया। तत्पश्चात् अतिशय भक्तिभार से नम्र तपस्वी ऋषि आये और अत्यन्त अद्भुत पराक्रम वाले भगवान् नृसिंह का दर्शन करके उनकी इस प्रकार स्तुति करने लगे- ‘सम्पूर्ण विश्व के स्वामी जगदीश्वर! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। विश्व को अभय प्रदान करने वाले विश्वमूर्ते ! आप कृपा के समुद्र हैं, आपके चरणकमल सेवन करने योग्य तीर्थरूप हैं। लक्ष्मीपते! हमपर दया कीजिये। भक्त की इच्छा के अनुसार विचित्र शरीर धारण करने वाले विश्वमुख! विश्वभावन ! आप प्रसन्न होइये।’ तब भगवान् नृसिंह ने प्रसन्न होकर ऋषियों से कहा- ‘वर माँगो।’ ऋषि बोले- ‘जगदीश्वर ! यदि आप प्रसन्न हों तो कृपा करके कभी बदरीक्षेत्र का त्याग न करें, यही हमारा अभीष्ट वर है।’

भगवान् ने ‘एवमस्तु’ कहकर उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। उसके बाद सब ऋषि अपने-अपने आश्रम को चले गये और भगवान् नृसिंह भी शिलारूप हो गये। जो तीन उपवास करके वहाँ भगवान् नृसिंह के जप और ध्यान में तत्पर होता है, वह साक्षात् नृसिंहरूपधारी भगवान्‌ का दर्शन पाता है। जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक इस प्रसंग को सुनता और सुनाता है, वह सब पापों से मुक्त हो वैकुण्ठ में निवास करता है।

क्रमशः…

शेष अगले अंक में जारी

〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *