घूंघट – एक श्रृंगार (वैदिक प्रमाण सहित)
प्राचीन भारत में पर्दा प्रथा और घूँघट प्रथा रही है, वहाँ घूँघट का अर्थ मुख ढँकना नहीं अपितु सिर को साड़ी या चुनरी से ढँकना था।
ऐसा भी नहीं था कि सिर ढँकना स्त्रियों के लिये ही अनिवार्य था ,पुरुषों के लिये भी सिर ढँकना अनिवार्य था। स्त्रियाँ साड़ी-चुनरी से सिर को ढँककर रखती थीं ,तो पुरुष मुकुट-पगड़ी आदि से सिर को ढँकते थे ।

आधुनिक काल में घूंघट प्रथा के दो रूप हैं –
सर ढकना और चेहरा ढकना।
सर के आवरण को हर जगह घूंघट ही कहते हैं जबकि चेहरे के आवरण को पर्दा भी बुलाया जाता है। इन दोनों में भेद है।
प्राचीन भारत में आवरण की बाध्यता नहीं थी। परंतु, छठीं शताब्दी में शुद्रक द्वारा रचित नाटक मृच्छकटिकम में बताया गया है कि महिलायें सुहाग-चिह्न की तरह अवगुंठन धारण करती थीं। अवगुंठन का प्रयोग महिलाओं के सम्मान या लज्जा की रक्षा के लिये नहीं, बल्कि बड़ों का सम्मान करने के लिये किया जाता था। इसके अलावा जिन लड़कियों का रिश्ता पक्का हो जाता वो भी इसे दर्शाने के लिये अवगुंठन धारण कर लेतीं।
यह मृच्छकटिकम में दर्शाया भी गया है। कुछ इसी तरह पुरुषों के लिये पगड़ी की रीति थी।

अवगुंठन को श्रृंगार भी माना जाता था, क्योंकि इसके ठीक उपयोग से सुंदर लंबे बालों का भान कराया जा सकता है। मध्ययुग में अवगुंठन किसी लड़की के अच्छे संस्कारों का प्रमाण भी हो गया, जैसा उस समय की कुमारी राजकन्याओं के परिधान में दिखता है।
घूंघट शब्द इस अवगुंठन से ही आया है। अवगुंठन एक लंबा, अलंकृत वस्त्र होता था जो सर से लेकर घुटनों तक एक चुनरी की तरह ओढ़ा जाता था। ऐसे ही दूसरे वस्त्र भी भारत में प्रचलित थे। यथा, उत्तरीय (कंधे को ढकने का वस्त्र), अधिकंठ-पट (गला और उसके नीचे ढकने का वस्त्र), शिरोवस्त्र (सर ढकने का छोटा वस्त्र), और मुख-पट (चेहरा ढकने का वस्त्र)।
मुख-पट को छोड़ बाकियों को आप उस समय का फैशन समझिये। मुख-पट एक बहुपयोगी वस्त्र था, जिसका उपयोग धूल-धूप से बचने के लिये या जोखिम के समय अपनी पहचान छुपाने के लिये किया जाता था।
उत्तरीय जैसे वस्त्रों को कई बार पुरुष भी धारण करते थे। शिरोवस्त्र का प्रयोग आज भी होता है।

स्त्रियों का पहनावा कैसा हो ?
इस विषय में स्वयं वेद प्रमाण है,
ऋग्वेद 10/71/4 में कहा है –
‘स्त्री को लज्जापूर्ण रहना चाहिये ।।