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श्री शिव महापुराण-श्रीवायवीय संहिता (उत्तरार्ध)

श्री शिव महापुराण-श्रीवायवीय संहिता (उत्तरार्ध)

छब्बीसवां अध्याय

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सांगोपांग पूजन…(भाग 1)

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उपमन्यु बोले- हे कृष्णजी! शिव पूजन परम फलदायक है। बड़े-बड़े पापी, ब्रह्महत्यारे, चोर, व्यभिचारी पुरुष यदि शिव पूजन करें तो उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इसलिए पतितों को शिव-पूजन अवश्य करना चाहिए। शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करने से बंधन में पड़े मनुष्य बंधन से मुक्त हो जाते हैं। अनेकों योनियों में जीवन व्यतीत करने के पश्चात हमें मनुष्य योनि मिली है। जो मनुष्य इस अलभ्य मनुष्य देह को पाकर भी शिव-पूजन नहीं करता उसका जन्म सफल नहीं होता। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को भक्तिपूर्वक त्रिलोकीनाथ भगवान शिव का पूजन-आराधन अवश्य करना चाहिए।

भगवान शिव के पूजन के समान अन्य कोई भी धर्म नहीं है। यह मनुष्य को सभी सांसारिक बंधनों एवं मोह-माया से मुक्ति दिलाने वाला है। शिव-पूजन करने के पश्चात मनुष्य को परिवार एवं बंधु-बांधवों सहित प्रसाद बांटना चाहिए।

क्रमशः शेष अगले अंक में…

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