संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराण
उत्कलखण्ड या पुरुषोत्तमक्षेत्र-महात्म्य
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इन्द्रद्युम्न-सरोवर में स्नान, नृसिंहजी का दर्शन-पूजन तथा भगवद्विग्रहों के ज्येष्ठ-स्नान का वर्णन…(भाग 2)
फिर पूर्णिमाको प्रातःकाल पूर्वोक्त विधिसे तीर्थराजके जलमें स्नान करके शुद्ध आहारका सेवन तथा इन्द्रियोंका संयम करते हुए मनुष्य भगवत्प्रीतिके लिये पाँच दिनोंतक केवल एक समय भोजन करे।
तत्पश्चात् मन्दिरमें प्रवेश करके मंचपर विराजमान पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण, बलभद्र और सुभद्राजीका दर्शन करके मनुष्य पापसे मुक्त हो जाता है।
जो ज्येष्ठकी अमावास्याको सर्वतीर्थमय कूपसे लाये हुए सुगन्धित जलके द्वारा स्नान कराये जाते हुए श्रीहरिका दर्शन करता है, उसके तन-मनमें पापका सम्पर्क नहीं रहता। चतुर्दशीको तृण अथवा काष्ठका सुदृढ़ एवं सुन्दर मंच बनवाकर हरी-हरी घासवाली भूमिपर स्थापित करे।

उसके ऊपर सुन्दर चंदोवा लगाकर उसे भलीभाँति सजा दे। नाना प्रकारकी मणियोंकी मालासे बन्दनवार बनावे। इस प्रकार मंचको स्थापित करके उसके दक्षिण भागमें कुएँसे जल निकालकर कलशोंमें भरकर शास्त्रोक्त विधिसे उन्हें शालाके भीतर रखे।
फिर उन कलशोंमें पावमानी ऋचाके द्वारा सुवासित जल भरे। यह कर्म चतुर्दशीकी आधी रातमें करनेयोग्य बताया गया है।
तदनन्तर धीरे-धीरे भगवान् बलभद्र और श्रीकृष्णको राजासे सम्मानित ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ले जायें। चंवर और ताड़के पंखेसे उनपर निरन्तर हवा करते रहें। भगवान्के शरीरपर जो पहले किया हुआ कच्चा लेप हो, उसे न छुड़ावे।
जिस प्रकार सुगन्धित लेपसे प्रतिदिन भगवान्का अंग पुष्ट हो, वैसा प्रयत्न करे। भगवान् को ले जानेवाले मनुष्य सावधान और सदाचारी हों। उन्हें ले जाकर मंचपर विराजमान करें। फिर शान्तिपूर्वक अधिवासित कलशोंके जलसे समुद्रज्येष्ठा मन्त्रके द्वारा भगवद्विग्रहोंको स्नान करावे।
यह स्नान दर्शन करने तथा अभिषेक करनेवाले मनुष्योंको कृतकृत्य करनेवाला है। जो मनुष्य वहाँ खड़े होकर प्रसन्नतापूर्वक भगवान्के ज्येष्ठस्नान और यात्राका उत्कण्ठित चित्तसे दर्शन करते हैं, वे संसारसमुद्रमें नहीं गिरते।

श्रीहरिके इस स्नानका दर्शन करनेवाले पुरुषोंकी जान-बूझकर या अनजान में की हुई अनादिसंचित पापराशि तत्काल नष्ट हो जाती है। स्नान-दर्शन करनेमें जो पुण्य बताया गया है, वही मंचपर विराजमान श्रीहरिका दर्शन करनेसे भी प्राप्त होता है।
ब्राह्मणो! वहाँ एक ही जगन्नाथजी तीन विग्रहोंमें स्थित है। उनमेंसे एक-एकका भी स्नान-दर्शन; भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाला है। जो भगवान्के स्नानके समय ‘जय रामभद्र ! जय सुभद्रे ! जय कृष्ण! जय जगन्नाथ!’ इस प्रकार प्रसन्नतापूर्वक उच्चारण करता है, वह मोक्षको प्राप्त होता है।
क्रमशः…
शेष अगले अंक में जारी
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