बहेलिए का तोते पकडना
विश्व की सबसे रहस्यपूर्ण घटना !
क्या आप जानते है ?
एक बहेलिया तोते कैसे पकडता है ? नहीं
तो सुनिए !
वह बॉस की लम्बी पोपली को एक धागे मे डाल देता है और पोपली पर धागे से बधा एक हरा मिरचा लटका कर पोपली के अन्दर से गुजरने वाले धागे के एक सिरे को पेड की एक डाल पर और दुसरे सिरे को उसी पेड की दुसरी डाल पर बाध देता है । जब तोता मिरचा खाने के लिए पोपली पर बैठता है और मिरचा खाने के लिए झुकता है तो उसके इस प्रयास से पोपली धागे पर घुम जाती है और उसे पकड कर वह लटक जाता है । नीचे गिरने के भय से वह पोपली नही छोडता और वह लटका ही रहता है । इस प्रकार बहेलिया उसे आसानी से पकड लेता है ।

यदि तोता चाहे तो पुपली छोड कर आसानी से उड सकता है परन्तु अज्ञान स्वरुप पैदा भय के कारण वह मुक्त नही हो पाता ।
इस समस्या का समाधान हेतु सारे तोते इक्कठे हुए अपने अति वृद्ध अनुभवी गुरु के पास उन्होने उनसे अपनी समस्या बतायी ।
गुरु ने कहा – यह तो बहुत आसान है। तुम्हारे पास पंख है और तुम गिर ही नही सकते सिर्फ उड ही सकते हो । पुपली छोड दो और उड जाओ । सारे तोते यह गुरु मन्त्र दोहराने लगे कि संकट के समय याद रहे – पुपली पकडना नही छोडना है । यह भूल न जाये उसे चिल्ला-चिल्ला कर दुहरा रहे थे ।

आज भी वे तोते पुपली जोर से पकड कर लटके हुए चिल्लाए जा रहे है । पुपली नही पकडना है छोडना है ।
यही अवस्था हम बहुतेरे आध्यात्मिक मित्रो की है – जो अत्यन्त ही विस्मयकारी है ।
अतिरिक्त प्रेरक-जरूर पढ़े
एक बार स्वामी रामकृष्ण से एक साधक ने पूछा, ‘‘मैं हमेशा भगवान का नाम लेता रहता हूं, भजन-कीर्तन करता हूं, ध्यान लगाता हूं, फिर भी मेरे मन में कुविचार क्यों उठते हैं?’’
यह सुनकर स्वामी जी मुस्कुराए। उन्होंने साधक को समझाने के लिए एक किस्सा सुनाया। एक आदमी ने एक कुत्ता पाला हुआ था और वह उससे बहुत प्यार करता था। उसके साथ ही मग्न रहता था। उसे गोद में लेता, उसके मुंह से मुंह लगाकर बैठा रहता। यहां तक कि खाते-पीते, सोते-जागते या बाहर जाते समय भी कुत्ता उसके साथ ही रहता था। उसकी इस हरकत को देखकर एक दिन एक बुजुर्ग ने उससे कहा कि एक कुत्ते से इतना लगाव ठीक नहीं। आखिरकार है तो पशु ही। क्या पता कब किसी दिन कोई अनहोनी कर बैठे। तुम्हें नुक्सान पहुंचा दे या काट ले।

यह बात उस आदमी के दिमाग में घर कर गई। उसने तुरन्त कुत्ते से दूर रहने की ठान ली लेकिन वह कुत्ता इस बात को भला कैसे समझे? वह तो मालिक को देखते ही दौड़कर उसकी गोद में आ जाता था। मुंह चाटने की कोशिश करता। मालिक उसे मार-मारकर भगा भी देता लेकिन कुत्ता अपनी आदत नहीं छोड़ता था। बहुत दिनों की कठिन मेहनत और उसको दुत्कारने के बाद कुत्ते की यह आदत छूटी।
यह कथा सुनाकर स्वामी जी ने साधक से कहा, ‘‘तुम भी वास्तव में ऐसे ही हो। जिन सांसारिक भोग-विलास में आसक्ति की आदतों को तुमने इतने लंबे समय से पालकर छाती से लगा रखा है वे भला तुम्हें इतनी आसानी से कैसे छोड़ सकती हैं?’’
पहले तुम उनसे लाड़-प्यार करना बंद करो। उन्हें निर्दयी, निर्मोही होकर अपने से दूर करो। तब ही उनसे पूरी तरह से छुटकारा पा सकोगे। जैसे-जैसे बुरी आदतों का दमन करोगे, मन की एकाग्रता बढ़ती जाएगी और चित्त में अपने आप धर्म विराजता जाएगा। ….