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नारायणी शिला मंदिर हरिद्वार विशेष

नारायणी शिला मंदिर हरिद्वार विशेष

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यहां पर भी श्राद्ध कर्म करने से मिल जाती है, पितरों को मुक्ति !

सबसे बड़ा पितृ तीर्थ बिहार के गया जी को माना जाता है, गया में पितृ पक्ष के दिन तर्पण करने से पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलकर मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं हरिद्वार में स्थित नारायणी शिला मंदिर में, पिण्डदान और श्राद्ध कर्म करने से गया जी के बराबर का पुण्य फल मिलता है।

हरिद्वार में हर-की-पौड़ी में सावंत घाट पर स्थिति नारायणी शिला और कनखल में पिंडदान और अपने पितरों का श्राद्ध करने से पितरों को मुक्ति मिलती है। तर्पण करने से पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति के लिए पितृ पक्ष में गया कि, ही तरह हरिद्वार में नारायणी शिला मंदिर का भी महत्व है, मान्यता है कि, नारायणी शिला मंदिर पर पिण्डदान और श्राद्ध कर्म करने से गया जी का पुण्य फल मिलता है !

पितृ पक्ष में पितरों का उनके देहान्त की तिथि के दिन श्राद्ध करना जरूरी माना गया है,  मान्यता है कि, पितरों का श्राद्ध ना करने से पितृ नाराज हो जाते हैं, जिसके बाद उनके श्राप से व्यक्ति पितृ दोष से ग्रसित हो जाता है, कहते हैं कि, जिस घर में पितृ दोष होता है, उस घर की सुख-शांति खत्म हो जाती है और तरह-तरह की समस्याएं आने लगती हैं, और परिवार कि, हर तरह से तरक्की-उन्नति रुक जाती है, अजीब गरीब दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता है, मृत्यु तुल्य कष्ट भोगने पड़ते हैं, जैसे असमय बालकों की मौत, बच्चों का विवाह ना होना, रोजी – रोजगार में चलना, असाध्य रोग हो जाना आदि !

पितृ दोष के निवारण के लिए देश में नारायणी शिला मंदिर को खास स्थान माना जाता है, इसीलिए पितृ दोष की शांति के लिए पितृ पक्ष सबसे उपयुक्त दिन होते हैं। इन दिनों में पित्रों को प्रसन्न कर पितृ दोष से भी मुक्ति पाई जा सकती है। मान्यता है कि, हरिद्वार में आकर अपने पित्रों का पिंडदान और गंगा जल से तर्पण करने से उन्हें मोक्ष मिल जाता है।

पुराणों में उल्लेख…

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माना जाता है कि, हरि के द्वार यानि धर्मनगरी हरिद्वार में जहां लोग गंगा में डुबकी लगाकर जन्म-जन्मान्तरों के पाप धोने आते हैं तो, वहीं लोग अपने पित्रों की आत्मा की शांति और उन्हें मोक्ष दिलाने की कामना लेकर भी हरिद्वार आते हैं।

वहीं पितृकर्म कराने के लिए नारायणी शिला मंदिर के अलावा कुशावर्त घाट खासतौर पर महत्वपूर्ण माना जाता है, पितृ कर्म करने के लिए हरिद्वार आकर लोग पहले गंगा में स्नान कर खुद को पवित्र करते है, इसके बाद या तो, नारायणी मंदिर या फिर कुशा घाट पर आकर श्राद्ध और गंगा जल से तर्पण कर अपने पितरों के मोक्ष की कामना करते हैं।

कुशा घाट का पुराणों में भी उल्लेख मिलता है, इस स्थान के बारे में माना जाता है कि, यह जगह भगवान शिव के अवतार दत्तात्रेय भगवान की तपस्थली रही है, इसी वजह से इस स्थान पर पितरों का अस्थि-विर्सजन, कर्मकांड, श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करने से पित्रों की आत्मा को शांति और मोक्ष दोनों ही प्राप्त हो जाते हैं।

नारायणी शिला मंदिर की कथा:

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नारायणी शिला मंदिर के बारे में कहा जाता है कि, एक बार जब गया सुर नाम का राक्षस देवलोक से भगवान विष्णु यानि नारायण का श्री विग्रह लेकर भागा तो, भागते हुए नारायण के विग्रह का धड़ यानि मस्तक वाला हिस्सा श्री बद्रीनाथ धाम के बह्मकपाली नाम के स्थान पर गिरा, उनके ह्दय वाले कंठ से नाभि तक का हिस्सा हरिद्वार के नारायणी मंदिर में गिरा और चरण गया में गिरे।

जहां नारायण के चरणों में गिरकर ही गयासुर की मौत हो गई, यानि वही उसको मोक्ष प्राप्त हुआ था, स्कंध पुराण के केदार खण्ड के अनुसार, हरिद्वार में नारायण का साक्षात ह्दय स्थान होने के कारण इसका महत्व अधिक इसलिए माना जाता है, क्योंकि मां लक्ष्मी उनके ह्दय में निवास करती है, इसलिए इस स्थान पर श्राद्ध कर्म का अत्याधिक विशेष महत्व माना जाता है।

हरिद्वार में गंगा जहां सबके पाप धो देती है तो, वहीं वह मृतकों की आत्माओं को मोक्ष भी प्रदान करती है। हरिद्वार में आकर श्रद्धा पूर्वक अपने पित्रों का पिंडदान व गंगा जल से तर्पण करने से उन्हें मोक्ष मिल जाता है, अपने पितरों का तर्पण और पिंड दान करने आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि, हरिद्वार की नारायणी जिला मंदिर में पिंडदान और तर्पण करने से पित्रों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, यहां पिंड दान करने से मन को शांति मिलती है और परिवार में सुख शांति रहती है, श्राद्ध पक्ष में श्रद्धालु यहां आकर अपने पितरों के लिए पिंडदान और तर्पण करते है !

पृथ्वी लोक पर अपनों को देखने आते हैं पूर्वज:

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मान्यता के अनुसार श्रद्धा द्वारा किया गया, अपने पितरों को नियमित कार्य को श्राद्ध कहा जाता है, अगर आप अपनी आंखों से दो आंसू भी अपने पितरों के निमित्त निकाल देते हैं तो, पितृ उसी से ही त्रप्त हो जाते हैं।

 पित्रों के तर्पण और पिंड दान करने का हरिद्वार में विशेष स्थान हैं, उसमें हर—की—पौड़ी, कुशा घाट कनखल और नारायणी शिला इन स्थानों पर पितरों की मुक्ति के लिए पिंडदान और तर्पण किया जाता है, क्योंकि हरिद्वार हरि का द्वार है और हरिद्वार में भगवान विष्णु और महादेव दोनों ही निवास करते हैं।

 इसलिए हरिद्वार में किया गया, अपने पितरों के लिए कोई भी कार्य किया जाए तो, उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है और आपके पितृ जिस भी योनि में होते हैं वह तृप्त हो जाते हैं।

पितृपक्ष में पितृ 15 दिनों तक पितृलोक से धरती पर ही निवास करते हैं, साथ ही अपनों को देखने आते हैं और अमावस्या के दिन वह पितृलोक के लिए वापसी चले जाते हैं, माना जाता है कि, जब पितृ खुश हो जाते हैं तो, परिवार में किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं रहती।

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