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संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराण-कार्तिक मास-माहात्म्य

संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराण

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कार्तिक मास-माहात्म्य

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कार्तिकमास की श्रेष्ठता तथा उसमें करने योग्य स्नान, दान, भगवत्पूजन आदि धर्मों का महत्त्व…(भाग 1)

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नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।

देवीं सरस्वतीं चैव ततो जयमुदीरयेत् ॥

‘भगवान् नारायण, नरश्रेष्ठ नर तथा सरस्वती देवी को नमस्कार करके जयस्वरूप इतिहास-पुराण का पाठ करना चाहिये।’

ऋषि बोले- सूतजी ! हमलोग कार्तिक मास का माहात्म्य सुनना चाहते हैं।

सूतजी बोले- ऋषियो ! तुमने मुझसे जो प्रश्न किया है, उसीको ब्रह्मपुत्र नारदजी ने जगद्‌गुरु ब्रह्मा से इस प्रकार पूछा था ‘पितामह! मासों में सबसे श्रेष्ठ मास, देवताओं में सर्वोत्तम देवता और तीर्थों में विशिष्ट तीर्थ कौन हैं, यह बताइये।’

ब्रह्माजी बोले-मासों में कार्तिक, देवताओं में भगवान् विष्णु और तीर्थों में नारायण तीर्थ (बदरिकाश्रम) श्रेष्ठ है। ये तीनों कलियुग में अत्यन्त दुर्लभ हैं।

इतना कहकर ब्रह्माजी ने भगवान् राधाकृष्ण का स्मरण किया और पुनः नारदजी से कहा- बेटा! तुमने समस्त लोकों का उद्धार करने के लिये यह बहुत अच्छा प्रश्न किया। मैं कार्तिक का माहात्म्य कहता हूँ। कार्तिकमास भगवान् विष्णु को सदा ही प्रिय है। कार्तिक में भगवान् विष्णु के उद्देश्य से जो कुछ पुण्य किया जाता है, उसका नाश मैं नहीं देखता। नारद ! यह मनुष्ययोनि दुर्लभ है। इसे पाकर मनुष्य अपने को इस प्रकार रखे कि उसे पुनः नीचे न गिरना पड़े। कार्तिक सब मासों में उत्तम है। यह पुण्यमय वस्तुओं में सबसे अधिक पुण्यतम और पावन पदार्थों में सबसे अधिक पावन है। इस महीने में तैंतीसों देवता मनुष्य के सन्निकट हो जाते हैं और इसमें किये हुए स्नान, दान, भोजन, व्रत, तिल, धेनु, सुवर्ण, रजत, भूमि, वस्त्र आदि के दानों को विधिपूर्वक ग्रहण करते हैं। कार्तिक में जो कुछ दिया जाता है, जो भी तप किया जाता है, उसे सर्वशक्तिमान् भगवान् विष्णु ने अक्षय फल देने वाला बतलाया है।

भगवान् विष्णु के उद्देश्य से मनुष्य कार्तिक में जो कुछ दान देता है, उसे वह अक्षयरूप में प्राप्त करता है। उस समय अन्नदान का महत्त्व अधिक है। उससे पापों का सर्वथा नाश हो जाता है। जो कार्तिक मास प्राप्त हुआ देख पराये अन्न को सर्वथा त्याग देता है, वह अतिकृच्छ्र यज्ञ का फल प्राप्त करता है। कार्तिक मास के समान कोई मास नहीं, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगाजी के समान दूसरा कोई तीर्थ नहीं है। इसी प्रकार अन्नदान के सदृश दूसरा कोई दान नहीं है। दान करने वाले पुरुषों के लिये न्यायोपार्जित द्रव्य के दान का सुअवसर दुर्लभ है, उसका भी तीर्थ में दान किया जाना तो और भी दुर्लभ है। है। मुनि मुनिश्रेष्ठ! पाप से डरने वाले मनुष्य को कार्तिक मास में शालग्रामशिला का पूजन और भगवान् वासुदेव का स्मरण अवश्य करना चाहिये।

क्रमशः…

शेष अगले अंक में जारी

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