संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराण
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उत्कलखण्ड या पुरुषोत्तमक्षेत्र-महात्म्य
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भगवान् पुरुषोत्तम के पार्श्व-परिवर्तन, उत्थापन और प्रावरण आदि उत्सवों का महत्त्व…(भाग 3)
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मार्गशीर्षके शुक्ल पक्षमें षष्ठी तिथिको मनुष्य भक्तिभावसे प्रावरणोत्सव अथवा उस उत्सवका दर्शन करके भगवान् विष्णुके लोकमें जाता है। पंचमीकी रात्रिमें भगवान्का वस्त्राधिवास करे, भगवान्को वस्त्रोंके मध्यमें स्थापित करके अन्य वस्त्रसे आच्छादित करे और पुरुषोत्तमके स्मरणपूर्वक उनका स्पर्श करके इस प्रकार प्रार्थना करे- ‘हे वस्त्र ! जो अविनाशी भगवान् विष्णु अपने तेजसे सम्पूर्ण जगत्को आच्छादित करनेवाले हैं, उनका भी वसन (आच्छादन) करनेसे तुम्हारा नाम वस्त्र है। तुम जगदीश्वरके वासस्थानमें निवास करो।’ तत्पश्चात् चन्दन और पुष्पसे भगवान्का पूजन करे और नृत्य-गीतके द्वारा जागरणपूर्वक रात्रि व्यतीत करे। फिर अरुणोदयकालमें प्रातः सन्ध्याके समीप पूर्ववत् एकाग्रचित्त हो पुनः भगवान्की पूजा करे। उसके बाद तीन बार मन्दिरकी परिक्रमा करके भगवान्को भी तीन बार घुमावे और उस आच्छादित वस्त्रको हटाकर दर्शन आदिके द्वारा संस्कार करे। तदनन्तर दूर्वा और अक्षतसे पूजा करके भगवान्की आरती उतारे।

हेमन्त ऋतुके आनेपर जो लोग उत्तम वस्त्रोंद्वारा भगवान् नृसिंहको आच्छादित करते हैं अथवा जो आच्छादन-महोत्सवका दर्शन करते हैं वे कभी मोहसे आच्छादित नहीं होते। देवाधिदेव भगवान्के इस प्रावरण महोत्सवका जो लोग भक्तिपूर्वक दर्शन करते हैं, वे सम्पूर्ण मनोरथों को प्राप्त कर लेते हैं।
क्रमशः…
शेष अगले अंक में जारी
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