*🔹घर में सुख-शांति के लिए🔹*
*🔹वास्तुशास्त्र के नियमों के उचित पालन से शरीर की जैव-रासायनिक क्रिया को संतुलित रखने में सहायता मिलती है ।*
*🔹घर या वास्तु के मुख्य दरवाजे में देहरी (दहलीज) लगाने से अनेक अनिष्टकारी शक्तियाँ प्रवेश नहीं कर पातीं व दूर रहती हैं । प्रतिदिन सुबह मुख्य द्वार के सामने हल्दी, कुमकुम व गोमूत्र मिश्रित गोबर से स्वस्तिक, कलश आदि आकारों में रंगोली बनाकर देहरी (दहलीज) एवं रंगोली की पूजा कर परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि ‘हे ईश्वर ! आप मेरे घर व स्वास्थ्य की अनिष्ट शक्तियों से रक्षा करें ।’*
*🔹प्रवेश-द्वार के ऊपर नीम, आम, अशोक आदि के पत्ते का तोरण (बंदनवार) बाँधना मंगलकारी है ।*
*🔹वास्तु कि मुख्य द्वार के सामने भोजन-कक्ष, रसोईघर या खाने की मेज नहीं होनी चाहिए ।*
*🔹मुख्य द्वार के अलावा पूजाघर, भोजन-कक्ष एवं तिजोरी के कमरे के दरवाजे पर भी देहरी (दहलीज) अवश्य लगवानी चाहिए ।*
*🔹भूमि-पूजन, वास्तु-शांति, गृह-प्रवेश आदि सामान्यतः शनिवार एवं मंगलवार को नहीं करने चाहिए ।*
*🔹गृहस्थियों को शयन-कक्ष में सफेद संगमरमर नहीं लगावाना चाहिए । इसे मन्दिर मे लगाना उचित है क्योंकि यह पवित्रता का द्योतक है ।*
*🔹कार्यालय के कामकाज, अध्ययन आदि के लिए बैठने का स्थान छत की बीम के नीचे नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे मानसिक दबाव रहता है ।*
*🔹बीम के नीचे वाले स्थान में भोजन बनाना व करना नहीं चाहिए । इससे आर्थिक हानि हो सकती है । बीम के नीचे सोने से स्वास्थ्य में गड़बड़ होती है तथा नींद ठीक से नहीं आती ।*
*🌞मेरे श्रीराम आए है तो द्वारिकाधीश भी आएंगे🌞*

*संतान को दोष न दें*.
बालक को इंग्लिश मीडियम में पढ़ाया अंग्रेजी बोलना सिखाया,
*’बर्थ डे’* और
*’मैरेज एनिवर्सरी’*
जैसे जीवन के शुभ प्रसंगों को अंग्रेजी संस्कृति के अनुसार जीने को ही श्रेष्ठ मानकर…
माता पिता को *’मम्मा’* और
*’डैड’* कहना सिखाया…
जब अंग्रेजी संस्कृति से परिपूर्ण बालक बड़ा हो कर आपको समय नहीं देता, आपकी भावनाओं को नहीं समझता, आप को तुच्छ मान कर जुबान लडाता है और आप को बच्चों में कोई संस्कार नजर नहीं आता है,
तब घर के वातावरण को गमगीन किए बिना या संतान को दोष दिए बिना कहीं एकान्त में जाकर रो लें…
*क्यों की…*
पुत्र की पहली वर्षगांठ से ही
भारतीय संस्कारों के बजाय
*केक* कैसे काटा जाता है सिखाने वाले आप ही हैं……
*हवन कुंड में आहुति कैसे डाली जाए,*…
*मंदिर,मंत्र, पूजा पाठ आदर सत्कार के संस्कार देने के बदले,*
केवल फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने को ही अपनी शान समझने वाले आप..
बच्चा जब पहली बार घर से बाहर निकला तो उसे,,
*’प्रणाम आशिर्वाद’*
के बदले
*’बाय बाय’*
कहना सिखाने वाले आप..
परीक्षा देने जाते समय
*इष्ट देव /बड़ों के*
पैर छूने के बदले
*’Best of Luck’*
कह कर परीक्षा भवन तक छोड़ने वाले आप..
बालक के सफल होने पर घर में परिवार के साथ बैठ कर खुशियां मनाने के बदले,,,
*होटल में पार्टी मनाने*
की प्रथा को बढ़ावा देने वाले आप..
बालक के विवाह के बाद
*कुल देवता / देव दर्शन*
को भेजने से पहले…
हनीमून के लिए *’फारेन /टूरिस्ट स्पॉट’* भेजने की तैयारी करने वाले आप..
ऐसे ही ढेर सारी अंग्रेजी संस्कृतियों को हमने जाने अनजाने स्वीकार कर लिया है,
अब तो बड़े बुजुर्गों और श्रेष्ठों के पैर छूने में भी शर्म आती है…
गलती किसकी…??
मात्र आपकी *(मां-बाप)* की
अंग्रेजी मात्र *भाषा* है…
इसे *सीखना* है..
इसकी संस्कृति को
*जीवन में उतारना* नहीं है..
*हिंदी भाषा, संस्कृत भाषा को जीवन में उतारे 💐क्योंकि इसमें संस्कार है।*
*मानो तो ठीक.*.
*नहीं तो भगवान ने जिंदगी दी है..*
*चल रही है*,
*चलती रहेगी.. ?*