भक्ति या दिखावा (जरूर पढ़े)
कल दोपहर मैं किसी काम से बाजार में पंसारी की दुकान पर गया। मुझसे पहले उसकी दुकान पर एक महिला खड़ी थी।
उस महिला के हाथ में एक डलिया (टोकरी) में ठाकुर जी थे।
हालांकि मुझे जो चीज चाहिए थी वह उनकी दुकान पर नहीं थी। परन्तु मैं ठाकुर जी को देखकर रुक गया।
मैंने ठाकुर जी से पूछा:- ओर मेरी सरकार कहाँ घूम रहे हो ?

ठाकुर जी बोले:- मत पूछ बाबा।, बाबा आजकल उनको कहा जाता है जो पूजा पाठ कथा आदि करते हैं l ठाकुर जी बोले :- पिछले दो घंटे से बाजार में भूखा प्यासा डुला रही हैं।प्यास के मारे कंठ सुखा जा रहा है।स्वयं गन्ने का जूस पी लिया। दो प्लेट दही भल्ले खा लिए। और मेरी बारी मे अपरस की सेवा है।
मैंने कही :- सरकार जल की व्यवस्था तो मैं कर दुंगा। परन्तु इस महिला का कैसे करें। इसके सामने कैसे जल पिलाऊँगा ?
ठाकुर जी बोले:- बाबा तू जल लेकर आ। मैं उपाय भी बताता हूँ।
मैं पास मे ही एक रेस्टोरेंट पर गया और एक पानी की बोतल ले आया l
ठाकुर जी बोले :- अब इसको बोल यह अपना पर्स चाट वाले की दुकान पर भूल आई है।
मैं महिला से बोला :- आप अभी दही भल्ले खाकर आए हो।
महिला अपने कपड़े देखने लगी। वो सोच रही थी। कही मेरे कपड़ो पर कोई चटनी तो नहीं लग गई है।
महिला ने मुझसे पूछा :- आपको कैसे पता ?

मैंने कहा :- जी मैं अभी उधर से ही आ रहा हूँ। वो चाट वाला मेरा जानकार हैं। उसी ने मुझे कहा था कि बाबा एक महिला जिनके हाथ में ठाकुर जी हैं।यदि आपको दिखें तो कहना कि वो अपना पर्स यही भूल गई हैं।
अब उस महिला की सांस रुक गई।वो कहने लगी :- हाय राम। मेरे पर्स में तो सोने की चैन और पाँच हजार रुपये हैं।
उसने आव देखा ना ताव ठाकुर जी को पंसारी के काऊंटर पर रख तुरंत भागी।
अब मुझे मोका मिल गया था। मैंने तुरंत पानी की बोतल खोली। उस समय तुलसी दल की व्यवस्था ना होने के कारण मैंने ठाकुर जी की कंठी माला से जल का स्पर्श करवाया और ठाकुर जी को जल धरा दिया।
ठाकुर जी बोले :- बाबा अब जान में जान आई।
इतनी देर में वो महिला सामने से आती दिखाई दी।
मैंने ठाकुर से कही :- सरकार यदि आज्ञा हो तो इसे दो चार अच्छी-अच्छी सुना दूँ ?
ठाकुर जी बोले :- रहने दे बाबा।

तू किस-किस को सुनाएगा। यहाँ तो अधिकतर लोगों का यही हाल है l कहीं जाना हो तो हमे साथ में ले जाते हैं और खाने पीने घूमने का शौक खुद करते हैं l मुझे तो अब आदत सी हो गई है। तू अब जा। यदि यहीं खड़ा रहा तो तेरा इससे झगड़ा हो जाएगा।
मैं ठाकुर जी के कहने से आ तो गया।परन्तु मन सारा दिन व्याकुल रहा।
मेरा आप सभी से हाथ जोड़ कर निवेदन है। कहीं ऐसा तो नहीं कि आप भी ऐसा ही कर रहे हो। क्योंकि सेवा में अपराध करने से तो अच्छा है कि सेवा ना ली जाए l क्यों झूठे हाथ, झूठे मुह, गंदी सड़को पर, मेरे ठाकुर को लिए डोलते हो, केवल आडम्बर के लिए, एक दूसरे की देखा देखी। मत दुःखी करो यू डलिया मे ले जा कर, मेरे ठाकुर को।
