जानिये, ब्राह्मण क्यों पूज्यनीय है
🔱🪷 JAI MAA SHARDA 🪷🔱
ब्राह्मण में ऐसा क्या है कि सारी
दुनिया ब्राह्मण के पीछे पड़ी है।
इसका उत्तर इस प्रकार है।
रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदासजी
ने लिखा है कि भगवान श्री राम जी ने श्री
परशुराम जी से कहा कि →
“देव एक गुन धनुष हमारे।
नौ गुन परम पुनीत तुम्हारे।।”
हे प्रभु हम क्षत्रिय हैं हमारे पास एक ही गुण
अर्थात धनुष ही है आप ब्राह्मण हैं आप में

परम पवित्र 9 गुण है-
ब्राह्मण_के_नौ_गुण :-
रिजुः तपस्वी सन्तोषी क्षमाशीलो जितेन्द्रियः।
दाता शूरो दयालुश्च ब्राह्मणो नवभिर्गुणैः।।
● रिजुः = सरल हो,
● तपस्वी = तप करनेवाला हो,
● संतोषी= मेहनत की कमाई पर सन्तुष्ट,
रहनेवाला हो,
● क्षमाशीलो = क्षमा करनेवाला हो,
● जितेन्द्रियः = इन्द्रियों को वश में
रखनेवाला हो,
● दाता= दान करनेवाला हो,
● शूर = बहादुर हो,
● दयालुश्च= सब पर दया करनेवाला हो,
● ब्रह्मज्ञानी,

श्रीमद् भगवत गीता के 18वें अध्याय
के 42श्लोक में भी ब्राह्मण के 9 गुण
इस प्रकार बताए गये हैं-
” शमो दमस्तप: शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च।
ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्म कर्म स्वभावजम्।।”
अर्थात-मन का निग्रह करना ,इंद्रियों को वश
में करना,तप( धर्म पालन के लिए कष्ट सहना),
शौच(बाहर भीतर से शुद्ध रहना),क्षमा(दूसरों के
अपराध को क्षमा करना),आर्जवम्( शरीर,मन
आदि में सरलता रखना,वेद शास्त्र आदि का
ज्ञान होना,यज्ञ विधि को अनुभव में लाना
और परमात्मा वेद आदि में आस्तिक भाव
रखना यह सब ब्राह्मणों के स्वभाविक कर्म हैं।
पूर्व श्लोक में “स्वभावप्रभवैर्गुणै:
“कहा इसलिएस्वभावत कर्म बताया है।
स्वभाव बनने में जन्म मुख्य है।फिर जन्म के
बाद संग मुख्य है।संग स्वाध्याय,अभ्यास आदि
के कारण स्वभाव में कर्म गुण बन जाता है।
दैवाधीनं जगत सर्वं , मन्त्रा धीनाश्च देवता:।
ते मंत्रा: ब्राह्मणा धीना: , तस्माद् ब्राह्मण देवता:।।
धिग्बलं क्षत्रिय बलं,ब्रह्म तेजो बलम बलम्।
एकेन ब्रह्म दण्डेन,सर्व शस्त्राणि हतानि च।।
इस श्लोक में भी गुण से हारे हैं त्याग तपस्या
गायत्री सन्ध्या के बल से और आज लोग उसी
को त्यागते जा रहे हैं,और पुजवाने का भाव
जबरजस्ती रखे हुए हैं।
*विप्रो वृक्षस्तस्य मूलं च सन्ध्या।
*वेदा: शाखा धर्मकर्माणि पत्रम् l।*
*तस्मान्मूलं यत्नतो रक्षणीयं।
*छिन्ने मूले नैव शाखा न पत्रम् ll*
भावार्थ — वेदों का ज्ञाता और विद्वान ब्राह्मण
एक ऐसे वृक्ष के समान हैं जिसका मूल(जड़)
दिन के तीन विभागों प्रातः,मध्याह्न और सायं
सन्ध्याकाल के समय यह तीन सन्ध्या(गायत्री
मन्त्र का जप) करना है,चारों वेद उसकी
शाखायें हैं,तथा वैदिक धर्म के आचार
विचार का पालन करना उसके पत्तों के
समान हैं।
अतः प्रत्येक ब्राह्मण का यह कर्तव्य है कि,,
इस सन्ध्या रूपी मूल की यत्नपूर्वक रक्षा करें,
क्योंकि यदि मूल ही नष्ट हो जायेगा तो न तो
शाखायें बचेंगी और न पत्ते ही बचेंगे।।
पुराणों में कहा गया है —
विप्राणां यत्र पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता।
जिस स्थान पर ब्राह्मणों का पूजन हो वहाँ
देवता भी निवास करते हैं।
अन्यथा ब्राह्मणों के सम्मान के बिना देवालय
भी शून्य हो जाते हैं।
इसलिए …….
ब्राह्मणातिक्रमो नास्ति विप्रा वेद विवर्जिताः।।
श्री कृष्ण ने कहा-ब्राह्मण यदि वेद से हीन भी हो,
तब पर भी उसका अपमान नही करना चाहिए।
क्योंकि तुलसी का पत्ता क्या छोटा क्या बड़ा
वह हर अवस्था में कल्याण ही करता है।
ब्राह्मणोस्य मुखमासिद्……
वेदों ने कहा है की ब्राह्मण विराट पुरुष भगवान
के मुख में निवास करते हैं।
इनके मुख से निकले हर शब्द भगवान का ही
शब्द है, जैसा की स्वयं भगवान् ने कहा है कि,
विप्र प्रसादात् धरणी धरोहमम्।
विप्र प्रसादात् कमला वरोहम।
विप्र प्रसादात् अजिता जितोहम्।
विप्र प्रसादात् मम् राम नामम् ।।
ब्राह्मणों के आशीर्वाद से ही मैंने
धरती को धारण कर रखा है।
अन्यथा इतना भार कोई अन्य पुरुष
कैसे उठा सकता है,इन्ही के आशीर्वाद
से नारायण हो कर मैंने लक्ष्मी को वरदान
में प्राप्त किया है,इन्ही के आशीर्वाद से मैं
हर युद्ध भी जीत गया और ब्राह्मणों के
आशीर्वाद से ही मेरा नाम राम अमर हुआ है,
अतः ब्राह्मण सर्व पूज्यनीय है।
और ब्राह्मणों काअपमान ही कलियुग
में पाप की वृद्धि का मुख्य कारण है।
प्रश्न नहीं स्वाध्याय करें।।
हर हर महादेव शिव शंभू 🔱

ब्राह्मणों का पूजनीय होना: एक गहराई से विश्लेषण
ब्राह्मणों को पूजनीय मानने की परंपरा हिंदू धर्म में सदियों से चली आ रही है। यह मान्यता विभिन्न धार्मिक ग्रंथों, सामाजिक संरचना और ऐतिहासिक कारणों से विकसित हुई है।
ब्राह्मणों को पूजनीय मानने के पीछे के कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:
- वेदों का ज्ञाता: ब्राह्मणों को वेदों का ज्ञाता माना जाता है। वेदों को हिंदू धर्म का सबसे प्राचीन और पवित्र ग्रंथ माना जाता है। ब्राह्मणों के पास वेदों का गहन ज्ञान होने के कारण उन्हें ज्ञान का भंडार माना जाता है।
- धार्मिक अनुष्ठानों का संचालन: अधिकांश धार्मिक अनुष्ठानों, यज्ञों और पूजा-पाठ का संचालन ब्राह्मण ही करते हैं। वे समाज में धार्मिक कार्यों के मार्गदर्शक माने जाते हैं।
- सामाजिक संरचना: प्राचीन भारत में वर्ण व्यवस्था प्रचलित थी जिसमें ब्राह्मणों को सर्वोच्च स्थान दिया गया था। इस व्यवस्था के अनुसार, ब्राह्मणों का कार्य धार्मिक अध्ययन और शिक्षण करना था।
- ज्ञान का प्रसार: ब्राह्मणों को ज्ञान का प्रसार करने वाला माना जाता है। वे समाज में शिक्षा का प्रसार करते थे और लोगों को धर्म और संस्कृति के बारे में बताते थे।
हालांकि, ब्राह्मणों को पूजनीय मानने की परंपरा के साथ-साथ कुछ महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है:
- व्यक्तिगत गुण: किसी व्यक्ति को उसके जन्म के आधार पर नहीं बल्कि उसके व्यक्तिगत गुणों के आधार पर सम्मान दिया जाना चाहिए।
- समाज में सभी वर्गों का समान अधिकार: समाज में सभी वर्गों के लोगों को समान अधिकार होने चाहिए।
- धर्म और जाति में अंतर: धर्म और जाति अलग-अलग चीजें हैं। किसी व्यक्ति को धर्म के आधार पर नहीं बल्कि उसके कर्मों के आधार पर आंका जाना चाहिए।

आज के समय में:
आज के समय में, समाज में कई बदलाव आए हैं और जाति व्यवस्था को चुनौती दी जा रही है। हालांकि, ब्राह्मणों को पूजनीय मानने की परंपरा अभी भी कुछ हद तक मौजूद है। यह महत्वपूर्ण है कि हम इस परंपरा को एक नए दृष्टिकोण से देखें और समाज में सभी वर्गों के लोगों को समान सम्मान दें।
निष्कर्ष:
ब्राह्मणों को पूजनीय मानने की परंपरा एक जटिल विषय है। इसे समझने के लिए हमें इतिहास, धर्म और समाजशास्त्र के विभिन्न पहलुओं पर विचार करना होगा।
यह लेख केवल जानकारीपूर्ण है और किसी भी धर्म या जाति के खिलाफ नहीं है।
क्या आप इस विषय पर और अधिक जानना चाहते हैं?
यदि आपके मन में कोई और प्रश्न हैं, तो बेझिझक पूछें। मैं अपनी पूरी कोशिश करूंगा कि आपके सभी सवालों का जवाब दूं।
आप निम्नलिखित विषयों के बारे में भी पूछ सकते हैं:
- वर्ण व्यवस्था
- हिंदू धर्म में ब्राह्मणों का स्थान
- ब्राह्मण समाज में बदलाव
- ब्राह्मणों के खिलाफ भेदभाव
मुझे उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।

#जय_सनातन⛳.
*`ये 16 मंत्र है जो हर सनातनी को सीखना और बच्चों को सिखाना चाहिए`*
*1. Gayatri Mantra*
ॐ भूर्भुवः स्वः,
तत्सवितुर्वरेण्यम्
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
*2. Mahadev*
ॐ त्रम्बकं यजामहे,
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ,
उर्वारुकमिव बन्धनान्,
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् !!
*3. Shri Ganesha*
वक्रतुंड महाकाय,
सूर्य कोटि समप्रभ
निर्विघ्नम कुरू मे देव,
सर्वकार्येषु सर्वदा !!
*4. Shri hari Vishnu*
मङ्गलम् भगवान विष्णुः,
मङ्गलम् गरुणध्वजः।
मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः,
मङ्गलाय तनो हरिः॥
*5. Shri Brahma ji*
ॐ नमस्ते परमं ब्रह्मा,
नमस्ते परमात्ने ।
निर्गुणाय नमस्तुभ्यं,
सदुयाय नमो नम:।।
*6. Shri Krishna*
वसुदेवसुतं देवं,
कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकी परमानन्दं,
कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम।
*7. Shri Ram*
श्री रामाय रामभद्राय,
रामचन्द्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय,
सीताया पतये नमः !
*8. Maa Durga*
ॐ जयंती मंगला काली,
भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री,
स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
*9. Maa Mahalakshmi*
ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो,
धन धान्यः सुतान्वितः ।
मनुष्यो मत्प्रसादेन,
भविष्यति न संशयःॐ ।
*10. Maa Saraswathi*
ॐ सरस्वति नमस्तुभ्यं,
वरदे कामरूपिणि।
विद्यारम्भं करिष्यामि,
सिद्धिर्भवतु मे सदा ।।
*11. Maa Mahakali*
ॐ क्रीं क्रीं क्रीं,
हलीं ह्रीं खं स्फोटय,
क्रीं क्रीं क्रीं फट !!
*12. Hanuman ji*
मनोजवं मारुततुल्यवेगं,
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं,
श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥
*13. Shri Shanidev*
ॐ नीलांजनसमाभासं,
रविपुत्रं यमाग्रजम ।
छायामार्तण्डसम्भूतं,
तं नमामि शनैश्चरम्।।
*14. Shri Kartikeya*
ॐ शारवाना-भावाया नम:,
ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा ,
वल्लीईकल्याणा सुंदरा।
देवसेना मन: कांता,
कार्तिकेया नामोस्तुते।
*15. Kaal Bhairav ji*
ॐ ह्रीं वां बटुकाये,
क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये,
कुरु कुरु बटुकाये,
ह्रीं बटुकाये स्वाहा।
*16. Bharat Mata*
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखद् वर्धितोऽहम्
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष काथो नमस्ते-नमस्ते।।
*सनातनी परिवार के सभी सदस्य सीखें और बच्चों को भी सिखायें 🙏🙏🙏🙏
