गणेश जी क्यों निगल लेते है त्रिदेवों को?
दुर्गमासुर सबसे शक्तिशाली असुर बनने के लिए माता की तामसिक पूजा करता है, जो निर्विघ्न रूप से पूरी हो सके, इसके लिए मायासुर नागों को मिट्टी खिलाकर जड़वत कर देता है। शेषनाग के आवाहन पर गणेश जी उनके पुत्र के रूप में लंबोदर अवतार में प्रकट होकर मायासुर को उसकी ही माया में फंसाकर जड़वत कर देते हैं,

उसके बाद मूलाधार चक्र के स्वामी होने के कारण गणेश जी सभी नागों की कुंडलिनी शक्ति जाग्रत कर माया को खंडित कर उसे बंदी बना लेते हैं।
जिसके बाद मायासुर भागकर अपने पिता ब्रह्मदेव की शरण में जाकर उनको अपने वश में करके गणेश जी के विरोध में खड़ा कर देता है।

जब गणेश जी ब्रह्मलोक पहुंचते है तब ब्रह्मदेव माया के वश में होने के कारण गणेश जी को कटु वचन कह देते है जिन्हें सुनकर महादेव और नारायण प्रकट होकर ब्रह्मदेव को समझने का प्रयास करते है जिस पर ब्रह्मदेव कहते हैं कि न मैं यहां से हटूंगा और न ही तुम्हें भीतर जाने दूंगा। तब गणेश जी कहते हैभीतर कहा कुछ भी भीतर है मै तो सर्वत्र हु और ये संपूर्ण दुनिया मेरे अंदर ही तो है और ये कहकर गणेश जी त्रिदेवों के साथ संपूर्ण ब्रह्माण्ड को निगल जाते है जिससे मायासुर की माया का प्रभाव खत्म हो जाता है फिर गणेश जी अपने पाश से मायासुर को पकड़कर उसका वध कर देते है।
