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‘अंतर्यामी और अंतःकरण’

*’अंतर्यामी और अंतःकरण’*

अंतर्यामी सभी में एक है, लेकिन अंतःकरण सबका भिन्न-भिन्न है। यह अंतःकरण का भेद ही अलग-अलग जीवों का वैशिष्ट्य है।

अंतःकरण के चार अवयव हैं- मन, बुद्धि, अहंकार और चित्त। ये चार जिसके द्वारा भासित होते हैं वह चेतना सभी में और सभी की समान है। चेतना में कोई भेद नहीं है, लेकिन वह चेतना इन्हीं चार अवयवों द्वारा जीव के रूप में व्यक्त होकर भासित होती है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति में भेद दिखाई पड़ता है। भेद मूल अस्तित्व में नहीं है। भेद उसके व्यक्त होने के साधनों में है।

व्यक्ति जब तक जीव भाव में रहता है वह अपने मन, बुद्धि, अहंकार और चित्त को ही अपना अस्तित्व मानता है, लेकिन अस्तित्व का आधार इसको प्रकाशित करने वाली चेतना है, जिसका बोध अंतःकरण के आवरण को हटाने के बाद होता है। मन चित्त की वृत्तियों का संकल्प और विकल्प के रूप में विश्लेषण करता है, बुद्धि उसमें से निश्चय करती है और अहंकार अस्मिता भाव से उसके अनुसार व्यवहार को प्रेरित करता है।

*जीवत्व और शिवत्व के मध्य अंतःकरण का आवरण है। यह आवरण हटते ही चेतना का आत्मबोध होता है। योगियों के अनुसार अंतःकरण के परे की क्षणिक अनुभूति भी जीवन की दिशा बदल देती और जिसको इसका सतत बोध होता है, वह जीवन मुक्त हो जाता है, इसलिए ध्यानी जीवन ही अध्यात्म मार्ग की कुञ्जी है।*

🌷 *गौ-पूजन से सौभाग्यवृद्धि* 🌷

➡ *09 नवम्बर 2024 शनिवार को गोपाष्टमी पर्व है ।*

🐄 *कार्तिक शुक्ल अष्टमी को ‘गोपाष्टमी’ कहते हैं | यह गौ-पूजन का विशेष पर्व है | इस दिन प्रात:काल गायों को स्नान कराके गंध-पुष्पादि से उनका पूजन किया जाता है | इस दिन गायों को गोग्रास देकर उनकी परिक्रमा करें और थोड़ी दूर तक उनके साथ जायें तो सब प्रकार की अभीष्ट सिद्धि होती है | सायंकाल जब गायें चरकर वापस आयें, उस समय भी उनका आतिथ्य, अभिवादन और पंचोपचार-पूजन करके उन्हें हरी घास, भोजन आदि खिलाएं और उनकी चरणरज ललाट पर लगायें | इससे सौभाग्य की वृद्धी होती है |*

🌷 *संत श्री जलाराम बापा जयंती* 🌷

➡ *08 नवम्बर 2024 शुक्रवार को संत श्री जलाराम बापा जयंती है ।*

🙏🏻 *जलाराम बापा का जन्म सन्‌ 1799 में गुजरात के राजकोट जिले के वीरपुर गॉंव में हुआ था। उनके पिता का नाम प्रधान ठक्कर और मॉं का नाम राजबाई था। बापा की माँ एक धार्मिक महिला थी, जो साधु- सन्तों की बहुत सेवा करती थी। उनकी सेवा से प्रसन्न होकर संत रघुवीर दास जी ने आशीर्वाद दिया कि उनका दुसरा प़ुत्र जलाराम ईश्वर तथा साधु-भक्ति और सेवा की मिसाल बनेगा।*

🙏🏻 *16 साल की उम्र में श्री जलाराम का विवाह वीरबाई से हुआ। परन्तु वे वैवाहिक बन्धन से दूर होकर सेवा कार्यो में लगना चाहते थे। जब श्री जलाराम ने तीर्थयात्राओं पर निकलने का निश्चय किया तो पत्नी वीरबाई ने भी बापा के कार्यो में अनुसरण करने में निश्चय दिखाया। 18 साल की उम्र में जलाराम बापा ने फतेहपूर के संत श्री भोजलराम को अपना गुरू स्वीकार किया। गुरू ने गुरूमाला और श्री राम नाम का मंत्र लेकर उन्हें सेवा कार्य में आगे बढ़ने के लिये कहा, तब जलाराम बापा ने ‘सदाव्रत’ नाम की भोजनशाला बनायी जहॉं 24 घंटे साधु-सन्त तथा जरूरतमंद लोगों को भोजन कराया जाता था। इस जगह से कोई भी बिना भोजन किये नही जा पाता था। वे और वीरबाई मॉं दिन-रात मेहनत करते थे।*

🙏🏻 *बीस वर्ष के होते तक सरलता व भगवतप्रेम की ख्याति चारों तरफ फैल गयी। लोगों ने तरह-तरह से उनके धीरज या धैर्य, प्रेम प्रभु के प्रति अनन्य भक्ति की परीक्षा ली। जिन पर वे खरे उतरे। इससे लोगों के मन में संत जलाराम बापा के प्रति अगाध सम्मान उत्पन्न हो गया। उनके जीवन में उनके आशीर्वाद से कई चमत्कार लोगों ने देखें। जिनमे से प्रमुख बच्चों की बीमारी ठीक होना व निर्धन का सक्षमता प्राप्त कर लोगों की सेवा करना देखा गया। हिन्दु-मुसलमान सभी बापा से भोजन व आशीर्वाद पाते। एक बार तीन अरबी जवान वीरपुर में बापा के अनुरोध पर भोजन किये, भोजन के बाद जवानों को शर्मींदगी लगी, क्योंकि उन्होंने अपने बैग में मरे हुए पक्षी रखे थे। बापा के कहने पर जब उन्होंने बैग खोला, तो वे पक्षी फड़फड़ाकर उड़ गये, इतना ही नही बापा ने उन्हें आशीर्वाद देकर उनकी मनोकामना पूरी की। सेवा कार्यो के बारे में बापा कहते कि यह प्रभु की इच्छा है। यह प्रभु का कार्य है। प्रभु ने मुझे यह कार्य सौंपा है इसीलिये प्रभु देखते हैं कि हर व्यवस्था ठीक से हो सन्‌ 1934 में भयंकर अकाल के समय वीरबाई मॉं एवं बापा ने 24 घंटे लोगों को खिला-पिलाकर लोगों की सेवा की। सन्‌ 1935 में माँ ने एवं सन्‌ 1937 में बापा ने प्रार्थना करते हुए अपने नश्वर शरीर को त्याग दिया।*

🙏🏻 *आज भी जलाराम बापा की श्रद्धापूर्वक प्रार्थना करने पर लोगों की समस्त इच्छायें पूर्ण हो जाती है। उनके अनुभव ‘पर्चा’ नाम से जलाराम ज्योति नाम की पत्रिका में छापी जाती है। श्रद्धालुजन गुरूवार को उपवास कर अथवा अन्नदान कर बापा को पूजते हैं।*

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